बुधवार, 4 जनवरी 2012

एक हकीकत एवं उसके कुछ निष्कर्ष...!!!

बहुत पुरानी बात बताता हूँ, जब हिन्दुस्तान का नामों-निशान भी नहीं था...यहाँ इधर-उधर सिर्फ जन-जातियां एवं कबीले ही थे, जो की अधिकांशतः जंगलों व पहाड़ों पर ही रहते थे....कुछ जनजातियाँ मैदानी भू-भागों में आ बसी और अपनी सभ्यता का विकास करने लगी...धीरे-धीरे और भी जन-जाति समूह मैदानों में आ बसे...इस प्रकार एक सभ्यता विकास कर रही थी...फिर बाहर से आर्य लोग आये...आर्य, इन्हें असुर बुलाते थे...क्यूंकि ये लोग कद में लम्बे और रंग में सांवले या काले थे...और खुद को देवता (सुर) बुलाते थे, ये लोग रंग से गोरे थे, अतः खुद को सुन्दर मानते थे...आर्यों ने इन्हें अपने छल-कपट से हरा दिया और सब-कुछ अपने अधीन कर, सबको अपना दास (सेवक) बना लिया और वर्ण व्यवस्था स्थापित की...किन्तु कुछ जन-जातियों ने इसे स्वीकार नहीं किया, अतः उन्हें बस्ती से बाहर या फिर से जंगलों में जाना पड़ा....सभी दास (सेवक) शूद्र कहलाये...और जो बस्ती से बाहर चले गये थे, उन्हें बाह्य या अछूत कहा गया...असमानता ने विकराल रूप धारण कर लिया था, जहाँ ब्राहमण राज किया करता था...और बाकी सभी उनके पियादे थे...आर्यों ने इस स्थान को आर्य-वर्त नाम दिया...फिर बुद्ध आते हैं, जो की वर्ण व्यवस्था के खिलाफ अपनी फिलोस्पी लोगों को समझाते हैं, जिसमें सभी को समानता थी, समान अवसर उपलब्ध थे, जो की पूर्ण जीवन-दर्शन था, नैतिक मूल्यों एवं मानवीयता पर आधारित था...लोग वर्ण व्यवस्था से बाहर आकर बौध-धम्म अपनाने लगे, बस्ती के बाहर रहने वाले बाह्यों/अछूतों ने भी बौध-धम्म अपना लिया...किन्तु जो जंगलों में चले गये थे, उनमें से कम ही लोग वापस आ पाए थे, क्यूँकी वे दूर तक चले गये थे...अब बारी थी सम्राट अशोक की...वह बौद्ध की फिलोस्पी से बहुत प्रभावित हुआ और उसने भारत से लेकर अफगानिस्तान तक बौद्ध धम्म को फैला दिया...हर तरफ समानता थी, सुख-शांति थी...जहाँ किसी भी प्रकार की कोई वर्ण व्यवस्था या जातियां नहीं थी, न ही किसी प्रकार की कोई छुआ-छूत...किन्तु बौद्ध धम्म की एक बाध्यता थी की इसे किसी को भी जोर जबरजस्ती ग्रहण नहीं करवाया जा सकता, जिसकी वजह से मनुवादी लोग वही तक संकुचित रह गये और बौद्ध नहीं बन पाए...तब बौद्ध धम्म चरम पर था, जिसे बौद्ध धम्म का स्वर्णिम काल कहा जाता है...वर्ण व्यवस्था ख़तम हो चुकी थी और ब्राहमणवाद गर्त में चला गया था...फिर आगे चलकर एक ब्राहमण सेनापति पुष्यमित्रसुंग आया, जो की वर्ण व्यवस्था को फिर से स्थापित करना चाहता था, उसने धोखे से अपने ही राजा वृहददत्त, जो की मात्र 15 वर्ष का बालक ही था, का क़त्ल कर, सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया...और फिर से वर्ण व्यवस्था को स्थापित करने में कामयाब हो गया...उस समय बौद्धों का बेरहमी से क़त्ल किया गया, उनके मठों को तहस-नहस कर दिया गया या फिर मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया...बौद्धिस्ट, मज़बूरी वश वर्ण व्यवस्था में आ गये, कुछ बस्ती से बाहर या जंगलों में चले गये...इस प्रकार बौद्ध धम्म का लगभग अंत हो गया...समय का चक्र घूमता रहा और हिंदुस्तान में पाखंड, अत्याचार एवं अमानवीयता ने अपनी जड़ें गहरी और गहरी कर ली...देश बाहरी लोगों का कई बार गुलाम बनता रहा...फिर अंग्रेज आये, जिन्होंने ब्राहमणों के इस जाल को समझा, उन्हें ब्राहमणों से नफरत हो गई...अंग्रेज, ब्राहमणों को नीच ही मानते थे, ब्राहमणों-सवर्णों की माँ-बहनों के साथ रंग-रेलियाँ मनाते थे...सवर्णों ने इसके विरोध में युद्ध छेड़ दिया...यह युद्ध केवल एक वर्ग का युद्ध था, किसी भी प्रकार की देश-क्रांति नहीं...कुछ समझौतों के बाद, आखिर देश कहने के लिए आज़ाद हो गया...किन्तु हकीकत में ऐसा नहीं था...अब बारी थी प्रधान-मंत्री बनाने की, मुस्लिम्स चूँकि संख्या में ज्यादा थे, तो उनकी उचित मांग थी की प्रधानमंत्री एक मुसलमान बनना चाहिए, जबकि मनुवादी ऐसा नहीं होने देना चाहते थे, तो उन्होंने अधिक संख्या दिखाने के लिए हिन्दू धर्म (जो की कोई धर्म है ही नहीं) में मुसलामानों को छोड़ लगभग अन्य सभी को, शहर से लेकर जंगलों में रहने वालों तक को इसमें शामिल कर लिया...जबकि जंगलों में रहने वाली जन-जातियां किसी भी धर्म के अनुयायी नहीं थे, उन्हें ST ....और जो बस्ती के बाहर रहते थे, बाह्य या अछूत थे, उन्हें SC घोषित कर दिया...जबकि आंबेडकर ने खूब कहा की ये कभी हिन्दू थे ही नहीं...यही मुख्य वजह थी की प्रधानमंत्री के दावे के लिए हिंदुस्तान का विभाजन हुआ...और इस प्रकार भारत को पहला प्रधानमंत्री सवर्ण के रूप में ही मिला...आज इतना समय बीत चुका है किन्तु फिर भी देश के मूलवंशी लोग (SC -ST) सत्ता से वंचित हैं...!
महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष :
1. SC (अनुसूचित जाति) - मूलतः बौद्धिस्ट और मुसलमान ही हैं, जिन्होंने कभी भी हिन्दू धर्म को नहीं अपनाया था, ये तो बाह्य या अछूत थे, जिनका सर्वाधिक शोषण व दलन हुआ, अतः इन्हें दलित भी कहा जाता है...ये प्रारंभिक लोग थे अर्थात भारत के मूलवंशी थे...!
2. ST (अनुसूचित जन-जाति) - अधिकांशतः मूलतः बौद्धिस्ट और मुसलमान ही हैं, जो की पूर्व में जंगलों में चले गये थे...जिन्होंने कभी भी हिन्दू धर्म को नहीं अपनाया, जबकि कुछ जन-जातियां कभी मैदानों में आई ही नहीं और न ही समाज की मुख्यधारा से जुडी, अतः इनका किसी भी धर्म से जुड़ा होना संभव ही नहीं है...ये भी प्रारंभिक लोग ही हैं अर्थात भारत के मूलवंशी हैं...!
3. OBC (अन्य पिछड़ी जातियां) - ये वो लोग थे...जिनको की आर्यों ने प्रारंभ में अपना दास (सेवक) बनाया था, जिनको शूद्र या नीच कहकर भी पुकारा जाता है...पुष्यमित्र सुंग ने जब बौद्धिस्टों का बेरहमी से कत्ल किया तो मृत्यु के भय से बौद्धिस्ट वर्ण व्यवस्था में आ गये थे...अतः OBC में अधिकांशतः बौद्धिस्ट और मुसलमान ही हैं...ये लोग मूलवंशी हैं...!
4. GENERAL (सामान्य) - इन्हें सवर्ण या ऊँची जाति के लोग कहा जाता है, ये लोग मूलतः विदेशी ही हैं...आर्य कहे जाते हैं...ये लोग वर्ण-व्यवस्था के जनक हैं...जो की अमानवीय कृत्य है...चूँकि पढाई-लिखाई के काम में निपुण थे, इन्होनें तरह-तरह की काल्पनिक कहानियां लिखी, और भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसा कर इन पाखंड एवं झूट-फरेब से लबालब कहानियों को उनका धर्म व आस्था का विषय बना दिया...ये लोग प्रकृति स्वरुप अव्वल दर्जे के धूर्त, पाखंडी एवं हिंसक नस्ल के प्राणी हैं, ये बेरहम होने के साथ-साथ कत्लेआम करने में तनिक भी संकोच नहीं करते...चूँकि ये षड्यंत्र रचने में माहिर हैं, अतः लगभग 2000 वर्षों से यहाँ राज़ कर रहे हैं...ये मनुस्मृति या ब्राहमणवाद के कट्टर समर्थक हैं, जो की पूर्ण रूप से अप्राकृतिक एवं अमानवीय है...!

* कृपया इस लेख को पढने के बाद अपना निष्कर्ष या मत जरुर लिखें....ताकि तर्क युक्त निष्कर्ष को इस लेख में शामिल किया जा सके...!

लेखक
Satyendra Humanist
note:-लिखे गए विचार लेखक के निजी विचार हैं 
वर्ण व्यवस्था की ग़ुलामी से आजादी के लिए जिन लोगो ने सनातन धर्म को त्यागा वही मूलनिवासी  बौद्ध और   मुसलमान  हैं 
Inqlaab Zindabad

2 टिप्‍पणियां:

  1. Sahmat
    Aur yahi gandagi enhone musalmano me bhi faila di aur jo kasar baki thi wo Iran se aaye hue musalmaan apne sath laye kyoki waha pe pahle se he vardwywastha maujud thi

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  2. Babasaheb ne inka pyramid ulta khada kiya- sanvidhan ke madhyam se...

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